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हिदायतें

हिदायतें  यादों के नशेमन में इतनी तो जगह रखना  नए सपने सजाने की कोई तो वजह रखना |  भूल जाते हैं सब आँखों से होते ही ओझल  जो गया जाने दो मेरे लिए तुम पलके बिछा के रखना |  कांच सा होता है प्यार पहला पहला  टूटे ना ज़रा इसको अपने दिल से लगा के रखना |  मिल जाती है नजरें  ना  चाहते हुए भी  मिलो गर किसी से तो अपनी पलकें झुका के रखना |  कभी कभी चेहरा ही बता देता है दिल की बातें  दुनिया को जो हो दिखाना वही चेहरा बना के रखना |  लगा देती है दाग जब जलती है तुमसे  ये दुनिया बड़ी ज़ालिम  है अपना दामन बचा के रखना |  प्यार प्यार प्यार बस प्यार ही मिलेगा  शर्त बस उसको अपना बना के रखना |  इस जहान  मैं लोग तुम्हें  ऐसे ही मिलेंगे  ऐसे लोगों से अपना वो जहान बचाके रखना |  तुम्हारा मन (मनप्रीत सिंह )

गुम

गुम  रोज सुबह क्यों गुम सा हो जाता हूँ मैं  दुनिया में लीन खुद को भूल जाता हूँ मैं  सुबह उठकर जब निहारता हूँ खुद को  उसी समय मेरी मुझसे मुलाकात होती है  वही एक चेहरा हे जिसको मैं और जो मुझको जानता है   दुनिया की भीड़ में मिलते ही मैं ,मैं नहीं रहता  चेहरा और नियत एक व्यंजन की तरह हो जाती है  जिसको जैसा पसंद वैसा परोसना पड़ता है  दिन भर यही चलता है और बोलना पड़ता है  नमक स्वादानुसार।    हर इंसान मुझे अपने हे नजरिये से तकता है  अपना प्रस्ताव और मत्त मेरे सामने रखता है   मैं उसकी तरफ देखकर मुस्कुराता हूँ और सोचता हूँ  कि इसको क्या बताऊँ नियत या नियति। उसका भी मन बहलाना पड़ता है  विष के घड़े पर शहद का लेप लगाना पड़ता है   गोधूलि बेला होते ही इस चक्रव्यूह पर विराम लगाकर  चल पड़ता हूँ फिर अपने से या अपनों से मिलने। अपनों कहना बेमाना सा लगता हे क्यूंकि  वहां भी जाते ही सब अपनी ख्वाहिशें और मत रखेंगे  मुझसे आज फिर किसी ने नहीं पूछा क्या किया -क्यों किया  और दिन कैसा रहा।  जहाँ भी मुझे कोई नहीं जानता  पेट की अग्नि शांत कर , फिर खुद को खुद में

जिंदगी का फलसफा

जिंदगी का फलसफा  जिंदगी के फलसफे से चार पन्ने रख लिए  एक में  बचपन लिखा , दूजे में दीवानगी  तीजे में रिश्ते व् नाते , चौथे में रवानगी  बालपन की मस्तीओं से चार लम्हे फिर लिए  पहले माँ की गोद में , फिर धरती माँ के सीने पर  चलके गिरना गिर के चलना , यही चला कुछ साल भर  न खुद की सुध थी न दुनिया  की चिंता  रोज कुछ पुराना तोड़ता रोज नए सपने बुनता  हारने का डर नहीं , ना ही जीतने की विवशता  यूँही मैंने तय किया मस्ती भरा ये रास्ता  फिर आया वो दौर जब जीवन का दूजा पन्ना खुला  खून में  उबाल और दीवानगी रही मुझको बुला  दुनिया अब छोटी लगे मेरे सपनों की उड़ान से  मन में थे जज्बात उमड़ते लहरों के उफान से  माँ गलत बाबा गलत हर शक्स गलत जो टोक दे  मेरे लिए हर एक दुश्मन जो मन की मर्जी रोक दे  अपनों से ज्यादा मुझे मेरे दोस्तों से प्यार था  उनसे लड़ना और मनाना बस यही कारोबार था  अब समां वो आया जब एक से मैं दो हो गया  या तो अपनों ने चुना या मैं खुद किसी का हो गया  रिश्तों के इस भंवरजाल में  यूँहीं मैं फसता गया  पति बना पिता बना फिर क्या क्या मैं बनता गय